Thursday, August 30, 2018

बाढ़ आने की स्थिति में क्या करें और क्या न करें?

डिजास्टर मैनेजमेंट एक ऐसा विषय है, जिसके बारे में सारी जानकारी सरकारी पदाधिकारियों के पास ही है, Monopoly of information ! आम आदमी अभी भी इस विषय के बारे में लगभग कुछ नहीं जानता. हालांकि वो साल दर डिजास्टर की चपेट में आता है. प्राकृतिक आपदाओं के कारण प्रतिवर्ष हमारे देश में जान और माल की भारी क्षति होती है. यह सही है कि प्राकृतिक आपदाओं पर मनुष्य का बस नहीं, लेकिन उचित जानकारी के साथ इसके खतरे को कम किया जा सकता है. Marginalised.in डिजास्टर मैनेजमेंट पर 50 आर्टिकल्स का सीरीज लेकर आ रहा है, ताकि डिजास्टर मैनेजमेंट की पेचीदगियों को आम आदमी आम भाषा में समझ सके. प्रस्तुत है इस कड़ी का पांचवां आर्टिकल:

नकुल तरुण-

आपदा की स्थिति में हमें पता होना चाहिए कि हमें क्या करना है और क्या नहीं करना है. मैं यहां आपसे बाड़मेर में आयी बाढ़ के बारे में बात करना चाहता हूं. 2006 के अगस्त महीने में बाड़मेर का सूखाग्रस्त जिला अचानक आयी बाढ़ से घिर गया, जिसमें मुख्य रूप से कवास और मालवा के गांवों में 104 लोगों की जान चली गयी. साथ ही बड़े पैमाने पर खरीफ की फसल तबाह हो गयी, जिसका मूल्य लगभग 1300 करोड़ रूपये आंका गया. इतना ही नहीं, बाढ़ की विभीषिका ऐसी थी कि लगभग 75,194 पशु भी इसकी भेंट चढ़ गए. यहां ध्यान रखने वाली बात यह है कि बाड़मेर में न कोई ब्रह्मपुत्र था, न कोसी, गंगा या कोई अन्य बड़ी नदी.
बाड़मेर एक ऐसी जगह थी जहां पीने का पानी भी एक बड़ी समस्या थी, स्वाभाविक है ऐसे में वहां के लोगों ने सपने में भी नहीं सोचा था कि यहां इस तरह की बाढ़ आ सकती है. बाड़मेर मरुभूमि क्षेत्र में बसा हुआ है और पूरे साल यहां वर्षा नहीं के बराबर होती है. बाड़मेर का औसत तापमान 27.1 डिग्री सेंटीग्रेड है, जो गर्मी के दिनों में तापमान 48 डिग्री के करीब पहुंच जाता है. यहां औसत वार्षिक वर्षा 295 मिमी है. 2006 में लेकिन सब कुछ बदल गया, जब महज़ सात दिनों में 723 मिलीमीटर पानी बरस गया और इस बेहद कम समय में इतनी बारिश ने बाड़मेर में अचानक बाढ़ जिसे ‘फ्लैश फ्लड’ भी कहते हैं कि स्थिति पैदा कर दी. जब पानी बाड़मेर के निचले इलाकों में घुसा, तो गांव वाले अपने घरों की ओर भागे और खुद को बाढ़ से बचाने के लिए अंदर से बंद कर लिया. वो खुद को इसी तरह जंगली जानवरों से सुरक्षित करने के आदी थे. ग्रामीणों के घर निचले इलाकों में बने थे, ताकि रेगिस्तान में उठने वाली धूल भरी आंधी से बचाव हो सके.
अधिकांश लोगों ने अपने जीवन में कभी बाढ़ नहीं देखा था, तो ऐसे में ग्रामीणों के पास इस बात की जानकारी नहीं थी कि बाढ़ की आपदा से खुद का बचाव कैसे करें? इसका नतीजा यह हुआ कि जान माल का भारी नुकसान उठाना पड़ा. यहां ये जिक्र करना जरुरी है कि जान माल की क्षति का सबसे बड़ा कारण अचानक आयी बाढ़ नहीं थी, बल्कि अचानक आयी बाढ़ से कैसे निपटे, इस बात की जानकारी का अभाव इस हिलाकर रख देने वाली क्षति के पीछे था. तो ऐसे में मेरी राय ये है कि आम जन को इस बात की जानकारी होना चाहिए कि बाढ़ आने की स्थिति में क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए?
क्या करें?
• आप और आपके परिवार को नजदीक के पक्के मकान, ऊंचे स्थानों या किसी सुरक्षित स्थान तक पहुंचने के मार्ग की जानकारी होनी चाहिए.
• जैसे ही पानी निचले इलाकों में प्रवेश करना शुरू करे, तत्काल प्रभाव से निचले इलाकों को खाली कर दें और सुरक्षित स्थान पर शिफ्ट कर जाएं.
• इस बात को सुनिश्चित कर लें कि अपनी जगह को खाली करते समय हर आदमी के पास लालटेन, टाॅर्च, कुछ खाने की सामग्री, पीने का पानी, सूखे कपडे और जरुरी दस्तावेज हों.
• ये सुनिश्चित करें कि परिवार के हर सदस्य के पास अपना पहचान पत्र जरुर हो.
• अपनी बेशकीमती चीजें ( जिन्हें आप साथ ले जाने में असमर्थ हों, घर में किसी ऊंचे स्थान पर रख दें, ताकि पानी से यथासंभव उनका बचाव हो सके.
• बिजली की आपूर्ति को रोक दें और नंगे तारों को न छुएं.
• अफवाहों पर ध्यान न दें. और न अफवाहों को फैलाएं. यथासंभव शांति बनाए रखें.
• बाढ़ के पानी के संपर्क में आने से जितना संभव हो सके, बचें क्योंकि बाढ़ के पानी में मानव मल, तेल, केमिकल या अन्य हानिकारक पदार्थों का समावेश हो सकता है.
• अगर आपको बाढ़ के पानी में चलना है, तो फिर लकड़ी या पोल का इस्तेमाल करें और सुनिश्चित करें कि आप गहरे पानी या खुले मैनहोल या गड्ढे में नहीं उतर जाएं.
• बिजली के खंबों और तारों से दूर रहें क्योंकि पानी में बिजली का करंट दूर दूर तक फ़ैल जाता है. अगर कहीं बिजली का खंबा गिरा हुआ देखें या बिजली का तार टूटा देखें तो बिजली कंपनी को तुरंत सूचना दें.
• बाढ़ आने के बाद अगर आप बाहर निकल रहे हैं, तो सावधानी बरतें क्योंकि जमीन पर कांच के टूटे बोतल, नुकीली धारदार चीजें, जंग लगी कांटी आदि हो सकते हैं. जमीन काई से भरी हो सकती है और नतीजतन फिसलन भरी हो सकती है. ऐसे में सावधानी बेहद जरुरी है.
• अद्यतन जानकारी ( अपडेट) के लिए रेडियो या टेलीविज़न से संपर्क में रहें. बाढ़ के दौरान टेलीविज़न के संपर्क में रहना सम्भव नहीं हो पायेगा तो ऐसे में रेडियो भरोसेमंद रहेगा.
• अगर सीलिंग गीली है, तो तुरंत बिजली की सप्लाई काट दें.
• प्रभावित कमरे में बाल्टी, मोटे तौलिये और पोछे का इस्तेमाल करके यथासंभव पानी को हटायें.

क्या न करें?
• तेज बहती धार के बीच न चलें. तेज बहती धार कम गहराई होने के बाद भी आपके पाँव उखाड़ सकती है.
• बाढ़ के तेज धार में तैरने की कोशिश न करें. तेज धार आपको बहाकर दूर ले जा सकती है.
• बाढ़ ग्रस्त इलाके में डूबी सड़क पर गाडी चलाने की कोशिश न करें. ये ध्यान में रहे कि केवल आधा मीटर गहरा बाढ़ का पानी आपकी गाडी को बहाकर ले जाने की क्षमता रखता है.
• बाढ़ के पानी के संपर्क में आ गए भोज्य पदार्थ को खाने से बचें.
• बाढ़ के पानी के उतर जाने के बाद भी पॉवर सप्लाई को बिना इंजीनियर को दिखलाए बगैर बहाल न करें. गैस लीक पर भी ध्यान रखें और सिगरेट पीने, लालटेन, माचिस, खुले में आग जलाने से बचें.
• अगर सीलिंग पानी से फूल गया हो, और झूल रहा हो, तो उससे दूर रहें.
• कभी भी गीली जमीन पर खड़े होकर टीवी, वीसीआर या कोई और बिजली के उपकरण को न चलायें.
• कभी भी वैक्यूम क्लीनर से ठहरे हुए पानी को हटाने की कोशिश न करें.
• कभी भी बेसमेंट में जमे बाढ़ के पानी को बहुत तेजी से निकालने की कोशिश न करें. अगर पानी का दवाब बहुत तेजी से घटता है, तो ये चारों ओर की दीवार पर बहुत ज्यादा और खतरनाक स्ट्रेस डाल सकता है.
बाढ़ अपने आप में आपदा नहीं है, बाढ़ आपदा तब बन जाती है जब आदमी के पास जानकारी नहीं होती कि इस परिस्थिति से कैसे निपटें, जैसा कि बाड़मेर के उदाहरण से आप समझ सकते हैं.
तो ऐसे में जानकारी ही बचाव है. जानकारी रखें और जान माल की अपूरणीय क्षति से बचें.
चर्चा जारी रहेगी…




Thursday, August 16, 2018

SCHOOL DISASTER MANAGEMENT PLAN


Globally, it is evident as there have been major casualties to innocent school children because of the earthquakes and school building collapses. On Dec 7, 1988 in Armenia thousands of school children killed including 400 at an elementary school in Dzhrashen which collapsed, on May 10, 1997; 110 students killed at Ardakul, Iran in Primary school collapsed. In 1999, the Chi-Chi Earthquake completely destroyed 43 Taiwan schools in the Nantou and Taichung area and a total of 700 schools nationwide were damaged. In the 2008 Sichuan Earthquake the rate of child mortality was substantial with the death of 19,000 students and the total destruction of about 7000 schools. 

In recent past, schools in India have also witnessed many disasters. To name a few, in 2001, the Gujarat (Bhuj)Earthquake in India caused severe damage to 11,600 schools; a total of 31 teachers died and 95 were injured; 971 students perished and 1,051 were injured. Formal education was disrupted due to widespread damage to physical infrastructure. A fire at the Lord Krishna School in Kumbakonam, Tamilnadu took the lives of 94 children in 2004; thousands of students and teachers were killed, injured or otherwise affected in the 2004 South Asia Tsunami. Over 400 people —about half of them students—at a school’s prize giving ceremony in Dabwali, Haryana burnt alive in 1995. Keeping in view the fact, various Global and Regional declarations highlighted School Safety programme as one of the most important components of Disaster Risk Reduction (DRR). 

According to the Seismic Hazard Map of India, a large part of our country identified in Seismic Zone IV which means the area falls under “High Damage Risk Zone” where earthquake of intensity VIII may occur. 

If any disaster, mainly earthquake and fire occur in day time, it has been noticed that the percentage of children dying are far higher due to unsafe environment and unprepared schools. In recent times, Government has taken aspects of disaster risk reduction in school seriously. Therefore, keeping in view the vulnerability of area and exposure of untrained school children, it becomes imperative to implement School Safety Programme in line with the Government of India guidelines to save invaluable children lives.



"I would urge parents associations and resident’s associations to take it upon themselves to inspect the schools in their area and the schools to which they send their children". Force school authorities to comply the norms set by the government. Every school should have School Disaster Management Plan (SDMP) in line with guidelines given by National Disaster Management Authority (NDMA).










Friday, August 3, 2018

क्या है प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदा?


डिजास्टर मैनेजमेंट एक ऐसा विषय है, जिसके बारे में सारी जानकारी सरकारी पदाधिकारियों के पास ही है, Monopoly of information ! आम आदमी अभी भी इस विषय के बारे में लगभग कुछ नहीं जानता. हालांकि वो साल दर डिजास्टर की चपेट में आता है. प्राकृतिक आपदाओं के कारण प्रतिवर्ष हमारे देश में जान और माल की भारी क्षति होती है. यह सही है कि प्राकृतिक आपदाओं पर मनुष्य का बस नहीं, लेकिन उचित जानकारी के साथ इसके खतरे को कम किया जा सकता है. Marginalised.in डिजास्टर मैनेजमेंट पर 50 आर्टिकल्स का सीरीज लेकर रहा है, ताकि डिजास्टर मैनेजमेंट की पेचीदगियों को आम आदमी आम भाषा में समझ सके. प्रस्तुत है इस कड़ी का दूसरा आर्टिकल 

-नकुल तरुण-
अपनी प्राकृतिक भौगोलिक परिस्थितियों और जलवायु के चलते भारत दुनिया में प्राकृतिक आपदाओं से सबसे अधिक ग्रस्त देशों में एक है. साथ ही साथ रासायनिक, जैविक, रेडियोलॉजिकल और परमाणु (सीबीआरएन) आपदाओं का संकट भी यहां मौजूद है. आपदाओं से बढ़ते जोखिमों की वजह कहीं कहीं बढ़ती आबादी, शहरीकरण, औद्योगिकीकरण, उच्च जोखिम वाले इलाकों में विकास जैसे कारकों से भी जुड़े हुए हैं.
आम तौर पर आपदाओं को दो वर्गों में बांटा जा सकता है-
1. 
प्राकृतिक आपदाएं: मसलन भूकंप, बाढ़, साइक्लोन, सूनामी इत्यादि
2. मानव निर्मित आपदा: जैसे कि बम विस्फोट, रेडिएशन, युद्ध इत्यादि
यहां साथ में ये भी बताता चलूँ कि आग को डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट 2005 में बतौर डिजास्टर शामिल नहीं किया गया है. इसके पीछे तर्क यह है कि आग को काबू में करने के लिए हमारे पास पहले से ही एक सिस्टम बना हुआ है, यही वजह है कि हमारे देश के नीति निर्धारकों ने आग को डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट 2005 में शामिल नहीं किया है.
संभवत: ऐसा इसलिए किया गया है, ताकि आपदाओं से निपटने की तैयारी करने वाले अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जा सके. मानव निर्मित आपदाओं में CBRN disasters आते हैं, जिसमें कैमिकल, बायोलाजिकल, रेडियोलाजिकल और न्यूक्लियर डिजास्टर को रखा गया है. पहले जिक्र किये गए प्राकृतिक आपदाएं तो हैं ही, पर मानव गतिविधियां इन आपदाओं की विभीषिका और इनके असर को और खतरनाक बनाने में अपनी भूमिका निभा रहे हैं.

वर्ष 2005 से पहले जब हमारे पास डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट नहीं था, हमारा ध्यान आपदा के बाद राहत पहुचाने पर रहता था. किसी भी आपदा के बाद हम राहत सामग्री बांटने पर अपनी एनेर्जी लगाते थे और आपदा से हुए नुकसान का आंकलन करने के बाद उसकी भरपाई के लिए मुआवजे का प्रबंध करते थे, लेकिन जबसे डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट आया है, इस सोच में निश्चित तौर पर बदलाव आया है, अब हमने अपना फोकस राहत सामग्री बांटने के सीमित लक्ष्य से बढ़ा कर विस्तृत बनाया है और अब हमने आपदाओं से निपटने की तैयारी, उसे रोकने के उपाय और इमरजेंसी सर्विस को मजबूत करने पर फोकस किया है. निःसंदेह ये दृष्टिकोण व्यापक होने के साथ साथ एकीकृत भी है. इसके बेहतर परिणाम सामने आये हैं.
अब हम आपदा के प्रभाव को कम करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं और देखा गया है कि इन प्रयासों से आपदा के प्रभाव कम हुए हैं. आपदा प्रबंधन और इसकी योजना को लागू करते वक्त हमें प्रभावित क्षेत्र की स्थिति और साथ ही आपदा प्रबंधन में लगे अधिकारियों की क्षमता को भी ध्यान रखना चाहिए. इस नजरिये को ध्यान में रखते हुए डिजास्टर मैनेजमेंट की हाई पावर कमेटी ने 2001 की अपनी रिपोर्ट में आपदा परिस्थितियों को तीन श्रेणी में रखा है. L1, L2, और L3. सामान्य परिस्थिति को L0 में रखा गया है. L0 परिस्थिति में भी हमारा रिस्पोंस रुकना नहीं चाहिए, बल्कि ऐसे समय में हमें आपदा के खतरे को कम करने पर काम करना चाहिए.
आपदा के तीन स्तर :
लेबल L1 : आपदा का यह स्तर वह है जिसमें जिला स्तर पर उपलब्ध क्षमताओं और संसाधनों के जरिये उसे मैनेज किया जा सके. यद्यपि इसमें आवश्यक होने पर राज्य की मशीनरी सहायता प्रदान करने के लिए तत्परता के साथ उपस्थित रहेगी.
लेबल L2 : लेबल 2 के आपदा  में राज्य स्तरीय एजेंसियों की तैनाती की आवश्यकता होती है. यदि राज्य चाहे तो केंद्रीय एजेंसियों से तत्काल तैनाती के लिए सहायता मांग सकता है.
लेबल-L3 : आपदा का यह  स्तर विनाशकारी होता है. यह एक बहुत बड़े पैमाने पर आये आपदा की ओर इशारा करता है. इसमें राज्य और  जिला अधिकारियों को पूरी तरह जुट जाना पड़ता है.
हालांकि आपदा परिस्थितियों का इस तरह के वर्गीकरण का जिक्र डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट 2005 में कही नहीं मिलता है और ना ही इस एक्ट में किसी भी डिजास्टर या आपदा कोराष्ट्रीय आपदाके रूप में चिह्नित करने का का कोई प्रावधान है.




















जागरूकता की अहम भूमिका
आपदाओं से निपटने में जागरूकता की अहम भूमिका होती है. जागरूकता को लेकर कई सक्सेस स्टोरीज भी उभरकर सामने आये हैं. जागरूकता की एक चर्चित कहानी का जिक्र यहां जरूरी है. 1984 के भोपाल गैस कांड से हम सभी परिचित हैं. इस कांड में सरकारी आंकड़ों के अनुसार 3000 से ज्यादा लोग मारे गये थे, जबकि फैक्टरी के अंदर के लोग बच गये, ऐसा क्यों हुआ? ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि फैक्ट्री में काम करने वाले कर्मचारियों को पता था कि जब गैस का रिसाव हो तो क्या करना चाहिए. अगर किसी जहरीली गैस का रिसाव हो तो, चेहरे को एक गीले कपड़े से ढंककर जमीन पर कुछ घंटों के लिए लेट जाना चाहिए.
कुछ घंटों में जहरीली गैस वातावरण में घुलकर फ़ैल जायेगी और लोग बच जायेंगे. फैक्ट्री के कर्मचारियों ने ऐसा ही किया और इस कारण वे साफ़ बच गये लेकिन बाहर के लोगों में जानकारी के अभाव में अफरा-तफरी मच गयी और वे बदहवास होकर इधर उधर दौड़ने -भागने लगे थे, जिसके चलते उन्होंने जहरीली गैसों को और अधिक अपने फेफड़ों में भर लिया, जिसके कारण मौत के आंकड़े बहुत बढ़ गए और आज भी इस भयंकर मानव निर्मित आपदा को हम याद करते हैं.

ब्लॉग संसाधन:- https://bit.ly/2McaZmS

How Disaster Management Helps You to Achieve Your Company’s Success

Disasters in the form of natural calamities, human errors, thefts, hacking and other incidents may take place at any time. Considering...